गुरुवार, सितंबर 13, 2012

हिंदी के सिंहासन पर।


हिन्दी दूर है हिन्दूस्तान से, नाम के लिये है राष्ट्र भाषा,

शायद हम भूल गये हैं, राष्ट्र भाषा की परिभाषा।

अरब में सुनाई देती  है  अरबी, बोलते हैं जापान मैं जापानी,

चाइना में चाइनीज़, इरान में इरानी, नहीं बोलते हैं  हिन्दी हिन्दूस्तानी।

जहाँ हिन्दी बोली जाती है, वो बहुत कम ही स्थान है,

हिन्दी के सिंहासन पर, अंग्रेजी  विराजमान है।

 

दूध पीते बच्चों को, अंग्रेजी  यहां सिखाते हैं,

हिन्दी सीख कर क्या बनेगा, बच्चों को समझाते हैं।

भारतीयों के मुख पर तो, अंग्रेजी  ही छाई है, हिन्दी के शब्दों की तो बस केवल परछाई है।

हिन्दी का निज देश में, हो रहा अपमान है,

हिन्दी के सिंहासन पर, अन्ग्रेजी विराजमान है।

 

हमारी जननी आज घर से, बहुत दूर हो गयी है,

वेदनायें है दिल में उसके, उदास बैठी रो रही है।

उमीद है उसे बहुत जल्द, भारतेंदू कोई आयेगा,

उसे अपने घर ले जाकर, खोया सम्मान  दिलायेगा।

शुक्ल प्रशाद और गुप्त, पुकारती कयी नाम है,

हिन्दी के सिंहासन पर, अंग्रेजी  विराजमान है।

 

पुरा हुआ मैकाले का स्वप्न, बहुत ही आसानी से,

लगता है भारतीय अंग्रेज  रूचि विचार और वाणी से।

नहीं  जानेंगे  अगर  हम अपनी भाषा, अपना इतिहास क्या जानेंगे,

अपनी संस्कृति सभ्यता, को कैसे हम मानेंगे।

प्रेमचन्द को हम भूल गये, शैक्सपियर का ध्यान है,

हिन्दी के सिंहासन पर, अंग्रेजी  विराजमान है।

 

हिन्दी हमारी जननी है, इस के महत्व को जानो,

छिपा है इस में अलौकिक ज्ञान, उस ज्ञान को पहचानो।

सूर तुलसी ने इसे संवारा  मीरा ने किया शृंगार,

देवों की भाषा है ये, अलौकिक है इस का संसार।

अनन्त है इस का सागर, इस में लिखे वेद पुराण है,

हिन्दी के सिंहासन पर, अंग्रेजी  विराजमान है।

 

राष्ट्र की प्रगति के लिये, हिन्दी को अपनाना होगा,

हिन्दी  देश की बिन्दी है, सब को ये समझाना होगा।

वो दिन न जाने कब आयेगा, जब हिन्दी होगी हर मुख पर,

हिन्दी सब की भाषा होगी, रहेंगे सब मिल-झुलकर।

वो दिन अब आने वाला है, ये मेरा ऐलान है,

हिन्दी के सिंहासन पर, अंग्रेजी  विराजमान है।


 

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