रविवार, मार्च 17, 2013

मैं वोही करण हूं...

मैं वोही करण हूं जिसे कल,
  नदि में तुमने बहा दिया था,
आज आया हूं फिर धरा पर,
वोही हुआ फिर मेरे साथ...

मां कल बताई थी तुमने,
रो रोकर अपनी मजबूरी,
फिर किया है आज   मेरा त्याग,
क्या इतने वर्षों में न बदलले हालात...

जानता हूं तुम तो आज भी,
बतादोगी बेवशता पहले सी,
स्वार्थवश फिर कभी तुम,
रख दोगी मेरे सर पे हाथ...

फिर किसी राधा का आंचल मिलेगा,
ममता से मेरा बचपन खिलेगा,
न दे सकेगी वो मुझे पहचान,
बाणों की फिर होगी बरसात...

दानवीरता बनेगी मौत का कारण,
मित्र मिलेगा कोई दुर्योधन,
सेवा करके भी  मिलेगा शाप,
भाई से होगी केवल  रण में मुलाकात...

9 टिप्‍पणियां:


  1. दिनांक 18/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  2. बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति आभार मृत शरीर को प्रणाम :सम्मान या दिखावा .महिलाओं के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MAN

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  3. बढ़िया रचना -
    मन की उद्विग्नता का सजीव चित्रण-
    शुभकामनायें आदरणीय-

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  4. सुनती कर्ण पुकार है, अब जा के सरकार |
    सोलह के सम्बन्ध से, निश्चय हो उद्धार |
    निश्चय हो उद्धार, बिना व्याही माओं के |
    होंगे कर्ण अपार, कुँवारी कन्याओं के |
    अट्ठारह में ब्याह, गोद में लेकर कुन्ती |
    फेरे घूमे सात, उलाहन क्यूँ कर सुनती ||

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  5. एक सुन्दर मार्मिक और भावनात्मक रचना !!

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  6. अपनी अपनी जियति है ... शायद माँ की कुछ मजबूरी रही होगी ...
    प्रभावी रचना ...

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  7. मन की उथल-पुथल को
    रेखांकित करती सार्थक रचना.........
    साभार.........

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ये मेरे लिये सौभाग्य की बात है कि आप मेरे ब्लौग पर आये, मेरी ये रचना पढ़ी, रचना के बारे में अपनी टिप्पणी अवश्य दर्ज करें...
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